मेरठ। किसी ने सही कहा है हर दुख दर्द में बेटी ही अहम भूमिका निमाती है। इस बात को एक बेटी ने अपने पिता को अपना गुर्दा देकर कर दिखाया है। बेटी ने पिता को नया जीवन दान दिया है। इस बात की जानकारी सुभारती अस्पताल के चिकित्सा उपाधीक्षक डॉ.कृष्णा मूर्ति, नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. आनन्द, नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. उमा किशोर, ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. सुरजीत, नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. दीपक जैन, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एचएस मिन्हास ने मीडिया को सम्बोधित करते हुए गुर्दा प्रत्यारोपण (रीनल ट्रांसप्लांट) के बारे में जानकारी दी।
डॉ.कृष्णा मूर्ति ने बताया कि गुर्दा प्रत्यारोपण (रीनल ट्रांसप्लांट) को सबसे कम दाम में शुरू कर जनमानस को लाभ सुभारती अस्पताल पहुंचा रहा। गुर्दा प्रत्यारोपण में आने वाले लाखों के खर्च को छत्रपति शिवाजी सुभारती अस्पताल ने कम करते हुए आधुनिक तकनीक के साथ बेहद कम दाम में करके मरीज को जीवनदान दिया है।
सुभारती अस्पताल के चिकित्सा उपाधीक्षक डॉ.कृष्णा मूर्ति ने बताया कि 50 वर्षीय एक मरीज जो पिछले दस साल से डायलिसिस पर जीवन व्यतीत कर रहा था। उक्त मरीज का सुभारती अस्पताल ने गुर्दा प्रत्यारोपण किया है। मरीज की बेटी ने अपने पिता को गुर्दा दिया है। उन्होंने बताया कि गुर्दा प्रत्यारोपण करते ही क्रिएटिनिन जो पहले 14 पॉइंट था, प्रत्यारोपण के बाद एक पॉइंट पर आ गया है। उन्होंने बताया कि इलाज के खर्च को कम करने के बावजूद इलाज की गुणवत्ता और ऑपरेशन के मानक उच्च गुणवत्ता युक्त है और दिल्ली मुम्बई स्थित जैसे बड़े अस्पतालों की तरह ही है।
उन्होंने बताया कि गुर्दा प्रत्यारोपण जटिल प्रक्रिया के साथ बेहद खर्चे वाला होता है। दिल्ली सहित आस पास के क्षेत्र में लगभग 20 लाख के खर्च में गुर्दे का प्रत्यारोपण किया जाता है। सुभारती अस्पताल ने गुर्दा प्रत्यारोपण को क्षेत्र की जनता के हित में सबसे सस्ता व सर्वसुलभ बनाते हुए कम दाम पर करना शुरू किया है।
उन्होंने गुर्दा प्रत्यारोपण (रीनल ट्रांसप्लांट) के बारे में बताया कि गुर्दों का सबसे जरूरी काम खून की सफाई करना है, जिन लोगों में गुर्दे खराब हो जाते हैं उनको खून की सफाई डायलिसिस की मशीन के द्वारा करवानी पड़ती है। परंतु लंबे समय में जैसे की 5 से 10 साल के बाद इसके भी अपने साइड इफैक्ट्स सामने आने लगते हैं। क्योंकि डायलेसिस कृत्रिम किडनी का काम करता है, इस वजह से ईश्वर द्वारा बनाए असली अंग का मुकाबला नही कर पाता, यदि मरीज को किसी दूसरे का गुर्दा लगवा दिया जाए तो उसकी शरीर में वह गुर्दा सामान्य रूप से काम करने लगता है, इसको रिनल ट्रांसप्लांट कहते हैं। एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में गुर्दा प्रत्यारोपण करने से पहले जांच करके यह सुनिश्चित किया जाता है कि दोनों गुर्दे आपस में अनुकूल है और लेने वाले अर्थात रेसिपीज का शरीर नए गुर्दे को स्वीकार कर लेगा। यदि एक ऐसा व्यक्ति मिल जाता है जिसका गुर्दा दाता के अनुकूल है तो फिर उसकी कुछ जांच करने के बाद जिलाधिकारी के अंतर्गत टीम से परमिशन ली जाती है, जो की केस का अध्ययन करने के बाद प्रत्यारोपण की परमिशन देती है। प्रत्यारोपण से पहले दोनों मरीज व दाता को अस्पताल में भर्ती कर ऑपरेशन की तैयारी की जाती है। दोनों का ऑपरेशन एक समय पर होता है। मरीज के शरीर में उसकी खून की नसों से जोड़ दिया जाता है। नए गुर्दे का काम ऑपरेशन करते हुए ओटी टेबल पर ही शुरू हो जाता है। इसको सुनिश्चित करते हुए ऑपरेशन की समाप्ति कर दी जाती है। यहां यह भी समझना बहुत जरूरी है कि मनुष्य को जीवन के लिए दो में से एक गुर्दा भी काफी होता है और इसी कारण एक गुर्दा दूसरे को दान किया जा सकता है।
कुछ केस में ऑपरेशन के बाद मरीज का शरीर नए गुर्दे को एक्सेप्ट नहीं करता जब कुछ दवाइयां देकर उसके शरीर की इम्यूनिटी को कम करने की जरूरत पड़ती है।इस अवसर पर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. आनन्द, नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. उमा किशोर, ट्रांसप्लांट सर्जन डॉ. सुरजीत, नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. दीपक जैन, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एचएस मिन्हास ने सुभारती अस्पताल द्वारा उच्च गुणवत्ता युक्त किये जा रहे गुर्दा प्रत्यारोपण (रीनल ट्रांसप्लांट) के बारे में विस्तार से जानकारी प्रदान की। अंत में मीडिया प्रभारी अनम शेरवानी ने सभी मीडिया कर्मियों का आभार व्यक्त किया। साथ ही इलाज के खर्च को कम करने के बावजूद इलाज की गुणवत्ता और ऑपरेशन के मानक मुम्बई – दिल्ली के बड़े अन्य महंगे अस्पतालों के जितने ही अच्छे है।