पैगंबर हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) के परपोते और कर्बला के 72 शहीदों की कुर्बानियां न सिर्फ 1400 साल से याद की जाती हैं, बल्कि मुहर्रम महीने के पहले दस दिनों में अशरा मजलिस का सिलसिला भी आम है मानवता की मिसाल इमाम हुसैन की शहादत के मौके पर शिया समुदा के लोगो के अलावा सभी मुस्लिम धर्मों के लोग मेरठ के विभिन्न इलाकों के इमामबारगाहों में इमाम हुसैन का जिक्र मजलिसों से करते है।
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले की बात करें तो शहर के जैदी नगर सोसायटी के पंजतनि इमामबारगाह के अलावा मनसबिया छोटी करबला घंटा घर इमामबारगाह जादियान और अब्दुल्लापुर में 9वीं मोहर्रम को अब्बास की शहादत का दिन माना जाता है कर्बला के शहीदों के शोक मनाने वालों ने अपने-अपने घरों में नज़र अब्बास का आयोजन किया। वहीं, इमामबारगाह पंजतनी में आज जाकिर अहले बैत मौलाना अमर हैदर रिजवी ने मजलिस और मातम के साथ जुल-जनाह की बरामदी की । इस मौके पर मौलाना ने जालिम और मजलूम के बीच फर्क बताने की कोशिश की कि जिस तरह आज फिलिस्तीन में हजारों मासूम बच्चों की हत्या की जा रही है,
उसी तरह अपने देश भारत में फिलिस्तीन का झंडा फहराने के संबंध में मौलाना ने कहा कि जब हम लोग कर्बला जब वहां जाते हैं तो अपने देश के तिरंगे के साथ आगे बढ़ते हैं, क्योंकि हमारे देश ने हमेशा जुल्म और आतंकवाद के खिलाफ आवाज उठाई है, लेकिन अगर हमारा देश किसी और के झंडे से नाराज है, तो हमें ऐसे मामलों से बचना चाहिए। ताकि देश में शांति और अखंडता कायम रह सके. क्योंकि जिस तरह हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) ने जुल्म के खिलाफ आवाज उठाई और अपने पूरे परिवार को शहीद कर दिया, उनका बलिदान हमें सिखाता है कि हमेशा जालिम के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए, चाहे वह कोई भी हो। वहीं मुहर्रम का महीना हमें इंसानियत को बचाने का संदेश भी देता है.