राजस्थान में लड़कियां आमतौर पर अपनी शादी में घोड़ी पर बैठती हैं. उनके परिवार ऐसा करके ‘बेटा-बेटी एक समान’ का संदेश देना चाहते हैं. लेकिन बात जब दलित लड़कियों के घोड़ी पर बैठने की आती है, तो समाज के भीतर से ही विरोध के स्वर उठने लगते हैं.
बाड़मेर ज़िले के मेली गांव में कुछ ऐसा ही हुआ. दो दलित बहनों को घोड़ी पर बैठा कर बिंदोली निकाली गई, लेकिन हाथों की मेहंदी का रंग जैसे ही हल्का पड़ा, वैसे ही घोड़ी पर बैठने का विवाद बढ़ने लगा. बिंदोली नाम की रस्म शादी के एक दिन पहले निभाई जाती है. इसमें लड़कियां अपनी कुलदेवी के पूजन के लिए जाती हैं.
दलित चिंतक भंवर मेघवंशी कहते हैं, “दलित महिलाएं दोहरे शोषण से गुज़रती हैं. बाहर जाति की वजह से सताई जाती हैं और ख़ुद के ही समाज में पितृ-सत्तात्मक सोच से सताई जाती हैं.”
बाड़मेर में सिवाना-कल्याणपुर सड़क पर बसा है मेली गांव. क़रीब 4,000 आबादी वाले गांव में लगभग 300 परिवार दलित मेघवाल समाज के हैं. इस गांव में पहली बार शादी से पहले लड़कियों को घोड़ी पर बिठाया गया है.
शंकर राम मेघवाल से बातचीत करते हुए कहते हैं, “इन बहनों की शादी के क़रीब दो महीने बाद मेघवाल समाज के 12 गांवों के पंचों की पंचायत हुई. वहां मुझे बुलाया गया और बहनों को घोड़ी पर बिठाने के लिए 50,000 रुपए जुर्माना लगाया. पैसा न देने पर समाज से उन्हें बहिष्कृत कर दिया गया.”
मुख्य सड़क से क़रीब 500 मीटर दूर गांव के भीतर शंकर राम मेघवाल का घर है. फ़िलहाल यहां गर्मी से ज़्यादा गर्माहट पंचायत के इस फ़ैसले की है. इसके कारण यहाँ खामोशी पसरी है.
शंकर लाल मेघवाल के घर में कई जगह डॉ भीमराव आंबेडकर की तस्वीर लगी हुई है. इस घर में पहले शादी की ख़ुशियां थीं, पर अब परिवार के लोग चिंतित हैं.
शंकर का उदास चेहरा उनकी चिंता की कहानी बयान कर रहा है. वो कहते हैं, “पंचायत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सिवाना थाने में शिकायत कर दी है, एसडीएम ऑफिस भी गया था.”