मेरठ: मौजूदा दौर में दिल की बीमारी से जुड़े मामले काफी ज्यादा बढ़ रहे हैं. युवा वर्ग भी हार्ट अटैक या कार्डियक अटैक की चपेट में आ रहा है. एक तरफ जहां इससे जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है वहीं कार्डियक साइंस में काफी तरक्की भी हो रही है जिससे मरीजों को नया जीवन मिल रहा है. अब हार्ट ओपन किए बिना ही सर्जरी हो रही हैं और तकनीक इतनी एडवांस हो गई है कि मुश्किल से मुश्किल केस का सफल इलाज हो रहा है.
ग्रेटर नोएडा के यथार्थ हॉस्पिटल कार्डियक साइंस एंड सीटीवीएस के हेड डॉक्टर अखिल कुमार रस्तोगी ने इस विषय पर विस्तार से जानकारी साझा की है. उनका कहना है कि लेटेस्ट एडवांसमेंट की मदद से ऐसे केस भी सुलझाए जा रहे हैं जो बिल्कुल बॉर्डर लाइन पर होते हैं. इससे न सिर्फ मरीजों को बेहतर इलाज मिल रहा है बल्कि उनकी क्वालिटी ऑफ लाइफ में भी सुधार हो रहा है.
भारत में कुल बीमारियों में से हर साल 50 फीसदी मामले दिल से जुड़ी समस्याओं के होते हैं, यहां कि प्री-मैच्योर डेथ में भी इसका ग्राफ काफी है. इससे भी हैरानी की बात ये है कि 25-40 वर्ष के बीच के लोगों में दिल की बीमारियां काफी बढ़ी हैं. एक अनुमान के मुताबिक, भारत में हर चार में से एक मौत हल्के लक्षणों को इग्नोर करने के कारण होती है. खासकर, ये आंकड़ा 25-35 वर्ष के बीच के सभी महिला और पुरुषों से जुड़ा है.
आजकल कई तरह की कार्डियक सर्जरी उपलब्ध हैं. इनमें बैलून माइट्रल वाल्वोप्लास्टी, बैलून एट्रियल वाल्वोप्लास्टी, एट्रियल सेप्टल या वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट क्लोजर हैं. वाल्व और जन्मजात समस्याओं के लिए भी इसी तरह की प्रक्रियाएं उपलब्ध हैं. कार्डियक सर्जरी के लिए आजकल तीव्र दिल के दौरे पड़ने पर रेडियल रूट प्राइमरी पीटीसीए है, हार्ट ओपन किए बिना वाल्व बदलने के लिए टीएवीआई प्रक्रिया है और ओपन हार्ट सर्जरी के बिना माइट्रल वाल्व में रिसाव की रिपेयरिंग के लिए माइट्रा क्लिप है.
1. ट्रांस-एओर्टिक वाल्वुलर इंटरवेंशन (TAVI)-कार्डियक साइंस के क्षेत्र में प्रगति के साथ, तीव्र दिल के दौरे पड़ने पर रेडियल रूट प्राइमरी पीटीसीए है, हार्ट ओपन किए बिना वाल्व बदलने के लिए टीएवीआई प्रक्रिया में परक्यूटीनियस तकनीक ने इलाज में क्रांति ला दी है. टीएवीआर एक ऐसी प्रक्रिया है जहां एओर्टिक वाल्व पेरिफेरल आर्टेरियल के जरिए इम्प्लांट किया जाता है. हार्ट फेल के गंभीर मामलों में ईसीएमओ, एलवीएडी और हार्ट लंग ट्रांसप्लांट जैसी प्रक्रियाओं ने एंड स्टेज के हार्ट पेशंट को नया जीवन दिया है.
2. माइट्रा क्लिप-वाल्वुलर हार्ट की जटिलताएं एक और घातक चीज है और इसमें वाल्व बदलना ही लास्ट विकल्प बचता है. लेकिन अब माइट्रा क्लिप को कैथेटर की मदद से लगाकर बिना सर्जरी के ही वाल्व की रिपेयरिंग कर दी जाती है. हालांकि, अगर इस तरह के मामलों में इलाज नहीं कराया जाता है इससे दिल का साइज बढ़ने का खतरा रहता है, सांस में समस्या होने लगती है, यहां तक कि हार्ट फेल होने का भी खतरा रहता है. भारत में अब तक, वाल्व रिपेयरिंग या रिप्लेसमेंट के लिए एकमात्र विकल्प ओपन हार्ट सर्जरी ही होता था और ये अक्सर खतरनाक साबित होता था. वहीं, माइट्रा क्लिप एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कैथेटर के जरिए दिल में वाल्व लगा दिए जाते हैं. इस प्रक्रिया में नसों के जरिए कैथेटर को इंट्रा ट्रायल सेप्टम में छेद करके दिल के राइट चैंबर से लेफ्ट चैंबर में भेजा जाता है. इसके बाद इकोकार्डियोग्राफी और एक्स-रे की मदद से लीक होने वाले वाल्व पर क्लिप लगाई जाती है, जिससे मरीज की स्थित में सुधार होता है. इस प्रक्रिया के 24-48 घंटे के अंदर मरीज को डिस्चार्ज किया जा सकता है.
3. दिल का क्रायोब्लेशन- ये एक बहुत ही लेटेस्ट तकनीक है और दिल की धड़कनों में होने वाले दिक्कतों से निपटने के लिए ये बहुत ही असरदार रहती है. ये एक मिनिमली इनवेसिव प्रक्रिया है यानी इसमें बहुत ही चीर-काट की जाती है. इसमें डॉक्टर एक पतली लचीली ट्यूब (बैलून कैथेटर) का इस्तेमाल हार्ट टिशू का पता लगाने और उसे फ्रीज करने के लिए करते हैं. इसमें टेंपरेचर माइनस 80 डिग्री तक रखा जाता है. इसके ट्रिगर होने से हार्ट बीट नॉर्मल होने लगती है. ये एक बहुत ही सुरक्षित प्रक्रिया है और इसमें स्वस्थ टिशू और आसपास के किसी हिस्से को नुकसान पहुंचने की आशंका जीरो रहती है. कई स्टडीज में इस प्रक्रिया को दवाइयों से ज्यादा लाभदायक बताया गया है.
4. माइक्रा AV पेसमेकर- पेसमेकर तकनीक में ये एक बहुत ही क्रांतिकारी चीज आई है. ये डिवाइस दुनिया में सबसे छोटा पेसमेकर है जिसकी बैटरी लाइफ 15 साल है. इसका वजन केवल 15 ग्राम है और इसमें डुअल चैंबर की क्षमता है. आज की तारीख तक, ये डिवाइस भारत के सिर्फ दो अस्पतालों में इंप्लांट की जाती है. परंपरागत पेसमेकर्स की तुलना में इसके इस्तेमाल से 63 फीसदी दिक्कतें कम हुई हैं. परंपरागत पेसमेकर की तुलना में, माइक्रा एवी एक एमआरआई कम्पैटिबल पेसमेकर है और इसमें कोई लीड अटैच नहीं होती है. माइक्रा एवी को पैर की नस के जरिए दिल में लगाया जाता है, जिसके चलते दिल में किसी तरह के कट लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती और इसमें किसी तरह के इंफेक्शन का चांस भी नहीं रहता है. यह दिल के भीतर पूरी तरह से आत्म-निहित है, जिससे चेस्ट के चीरे से होने वाली किसी भी समस्या का डर नहीं रहता है और दिल में पारंपरिक पेसमेकर से चलने वाले तारों के जैसा भी डर इसमें नहीं होता है.
मिनिमली इनवेसिव हार्ट सर्जरी मरीजों के लिए बहुत ही ज्यादा लाभदायक साबित हो रही हैं. इनमें कम टाइम लगता है, ब्लड लॉस कम होता है, दर्द कम होता है और मरीज को सर्जरी के बाद आईसीयू व अस्पताल में कम वक्त गुजारना पड़ता है. ज्यादातर मरीज सर्जरी के बाद पूरी विश्वास के साथ अपने काम पर लौटते हैं. हार्ट डिजीज में, एडल्ट लोगों में होने वाली कोरोनरी धमनी की बीमारी एक बहुत ही आम है और जब हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज भी इसके साथ हो तो दिल का दौरा पड़ने का खतरा रहता है. कोरोनरी धमनी डिजीज का इलाज बाईपास सर्जरी होता है. और अब ‘टोटल आर्टरी बाईपास’ इसका सबसे लेटेस्ट इलाज है.
डॉक्टर अखिल रस्तोगी ने कहा कि हमारे अस्पताल में विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम है जो एडल्ट और जन्मजात हार्ट डिजीज के मामलों में सर्जरी करने में सक्षम हैं. इनमें सीएबीजी-रेडो, कार्डियक वाल्व रिप्लेसमेंट, कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग (सीएबीजी), हार्ट डबल वाल्व रिप्लेसमेंट (एएसडी, वीएसडी, टीओआई, पीडीए, सीओए जैसे छेद के मामलों में) सर्जरी की जाती है. हमारा मकसद लोगों को स्वस्थ लाइफस्टाइल मुहैया कराना है.