Bihar Politics: बिहार में दलित राजनीति करने वाली पार्टियों के नेता भी आनंद मोहन सिंह की रिहाई का विरोध नहीं कर रहे हैं. आनंद मोहन सिंह पर चिराग पासवान चुप हैं तो जीतन राम मांझी ने उन्हें बड़ा लेखक बता दिया है.
Bihar Politics:बिहार में आनंद मोहन सिंह की रिहाई के सहारे सभी राजनीतिक दल चुनावी बैतरनी पार करना चाह रहे हैं. क्या पक्ष, क्या विपक्ष सब आनंद मोहन सिंह की रिहाई का दिल खोलकर स्वागत कर रहे हैं. एक IAS अधिकारी की हत्या में दोषी साबित होने के बाद उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन सिंह की रिहाई पर सभी खुश हैं. बिहार में दलित राजनीति का झंडा उठाने वाले नेता भी उनका यशगान कर रहे हैं.
‘हम’ संरक्षक और बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी कोर्ट द्वारा हत्यारा साबित हुए आनंद मोहन को बुरा आदमी नहीं मानते हैं और इसके लिए उन्होंने शानदार तर्क भी दिया है. जीतन राम मांझी ने कहा है कि आनंद मोहन बुरे लोगों में नहीं हैं. उन्होंने कई किताबें लिखी हैं. बीजेपी भी आनंद मोहन सिंह की रिहाई का स्वागत कर रही है.
हालाकि पार्टी में इसको लेकर कुछ कन्फ्यूजन है. आनंद मोहन सिंह मामले में केंद्र और राज्य के नेताओं के सुर अलग हैं. बिहार बीजेपी के नेता जहां दिल खोल कर इसका स्वागत कर रहे हैं तो वहीं बीजेपी के IT सेल के हेड अमित मालवीय ने इसे दलित विरोधी फैसला बताया है.
अमित मालवीय ने कहा फैसला दलित विरोधी
अमित मालवीय ने ट्वीट किया, “बिहार की नीतीश सरकार के लिए यह बहुत शर्म की बात है कि ड्यूटी के दौरान सरकारी अधिकारी की हत्या के दोषी को रिहा करने के लिए 2012 के जेल मैनुअल में संशोधन किया गया. जिस आरजेडी नेता के लिए नियम में बदलाव हुआ है, उसने दलित IAS जी कृष्णैया का मर्डर किया था.”
अमित मालवीय भले ही आनंद मोहन सिंह की रिहाई के लिए नीतीश कुमार को लानत भेज रहे हैं, लेकिन उनकी पार्टी के नेता आनंद मोहन सिंह को साजिश का शिकार, पीड़ित और बेचारा बता रहे हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा कि बेचारे आनंद मोहन सिंह बहुत दिनों से जेल में बंद थे.
साजिश के शिकार हुए आनंद मोहन सिंह- राजीव प्रताप रूडी
वहीं बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी ने कहा कि आनंद मोहन सिंह साजिश के शिकार हुए हैं. भीड़ द्वारा की गई हत्या के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया गया और उनकी राजनीति को खत्म करने का प्रयास किया गया. अभी दो-चार दिन पहले ही आनंद मोहन सिंह की रिहाई के लिए नियम में बदलाव का सुशील मोदी ने विरोध किया था.
सुशील मोदी ने कहा था कि जब प्रभावशाली लोगों के लिए कानून में बदलाव किया जा सकता है तो शराब बंदी कानून के तहत जेल में बंद लोग, जिसमें सबसे ज्यादा गरीब और दलित हैं. उन्हें सरकार आम माफी क्यों नहीं दे रही है? हालांकि अब सुशील मोदी के भी सुर बदल गए हैं. अब वह कह रहे हैं कि उन्हें आनंद मोहन सिंह की रिहाई से कोई ऐतराज नहीं है.
क्यों अहम हो गए हैं आनंद मोहन सिंह?
जी कृष्णैया हत्याकांड में दोषी ठहराए गए आनंद मोहन सिंह 2007 से ही जेल में बंद थे. अभी वह बेटे की सगाई और शादी के लिए पैरोल पर बाहर निकले हैं. इस बीच सरकार ने उन्हें रिहा करने के लिए अधिसूचना जारी कर दी है. आनंद मोहन सिंह की स्थाई रिहाई 26 या 27 अप्रैल को हो सकती है. बिहार के सभी दल आनंद मोहन सिंह की रिहाई का समर्थन कर रहे हैं (कुछ वाम दलों को छोड़कर) तो इसकी बड़ी वजह आनंद मोहन सिंह के पीछे का सवर्ण वोटर है.
आनंद मोहन सिंह सवर्ण जाति खासकर राजपूत जाति के नेता हैं. 90 के दशक में वह बिहार में सवर्ण राजनीति का चेहरा थे. सालों से जेल में बंद रहने के बाद भी आनंद मोहन सिंह का कोसी क्षेत्र के सवर्ण वोटर में प्रभाव है. यही वजह है कि कोई भी पार्टी आनंद मोहन सिंह की रिहाई का विरोध कर सवर्ण विरोधी होने का रिस्क नहीं ले रही है.
दलित नेताओं को भी प्रिय आनंद मोहन सिंह
इधर, तेजस्वी यादव ने आनंद मोहन सिंह के मामले में चुप्पी साध रखी है तो इसकी वजह दलित वोटों की नाराजगी का भी डर है, लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि बिहार में दलित राजनीति करने वाली पार्टियों के नेता भी आनंद मोहन सिंह की रिहाई का विरोध नहीं कर रहे हैं. आनंद मोहन सिंह पर चिराग पासवान चुप हैं तो जीतन राम मांझी ने उन्हें बड़ा लेखक बता दिया है.