मेरठ। दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज द्वारा संस्थापित एवं संचालित ‘दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान’ के तत्वाधान में रविवार को ओम ट्रॉमा हॉस्पिटल के पीछे स्थित पार्क, सेक्टर-5, जागृति विहार में मासिक सत्संग समागम का भव्य आयोजन हुआ। यह कार्यक्रम वसंत पंचमी के पावन पर्व को समर्पित रहा। कार्यक्रम का शुभारम्भ श्री आशुतोष महाराज जी की ब्रह्मज्ञानी शिष्याओं द्वारा रुद्री पाठ के उच्चारण से हुआ।
इस दिव्य कार्यक्रम में साध्वी अम्बिका भारती ने प्रवचनों के माध्यम से बसंत पंचमी से जुड़े आध्यात्मिक, नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों को उजागर किया। साध्वी जी ने बताया कि संस्कृत शब्द ‘वस ‘का अर्थ है ‘चमकना’ अर्थात वसंत ऋतु प्रकृति की पूर्ण यौवन अवस्था है। पुराणों के अनुसार बसंत पंचमी के पावन पुनीत अवसर पर ही सिंधु-सुता माँ रमा ने भगवान विष्णु को वर रूप में प्राप्त किया था। यह मंगल मिलन लक्ष्य प्राप्ति का द्योतक है। इसलिए बसंत पंचमी का पर्व हमें याद दिलाता है कि हम हर संभव प्रयास करें कि हमारे कदम ईश्वर की ओर शीघ्रता से बढ़ें। बसंत पंचमी के पर्व को माँ सरस्वती के प्राकट्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। सरस्वती का प्राकट्य माने जीवन में पूर्ण सुविद्या का प्रकटीकरण। उनके प्रकट होते ही प्रकृति ने अपनी उग्रता छोड़ दी। पवन शीतल बनकर सबको अपने सौम्य-स्पर्श से सहलाने लगी। इसमें प्रेरणादायक शिक्षा है। जब हमारे भीतर विद्या जागृत हो, तो हमारी प्रकृति और प्रवृत्ति भी सौम्य हो जानी चाहिए। विद्या केवल मस्तिष्क को नहीं जगाती, हमारी चेतना में परिवर्तन को भी जागृत करती है। यदि ऊँची-ऊँची डिग्रियाँ प्राप्त करके भी यह सचेतना भीतर नहीं जागी, तो समझ लेना चाहिए कि सच्ची विद्या हासिल नहीं हुई। माँ सरस्वती का आशीर्वाद नहीं मिला।
साध्वी सुश्री आर्या भारती ने बताया कि जब मनुष्य एक पूर्ण गुरु द्वारा ‘विद्याओं की विद्या – ब्रह्मविद्या’ अर्थात ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त करता है, तब ही उसका जीवन सही मायने में बसंत हो पाता है। ऐसे प्रेरणादायी प्रवचनों को सुन सभी श्रद्धालु अभिभूत हो उठे। कार्यक्रम का समापन सामूहिक ध्यान-साधना एवं प्रभु के पावन भंडारे द्वारे हुआ।