मेरठ । उर्दू विभाग,सीसीएसयू एवं इंटरनेशनल उर्दू स्कॉलर्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित साप्ताहिक कार्यक्रम “अदबनुमा” के अंतर्गत “न्यू एज लिटरेरी सर्विसेज” विषय पर अपने अध्यक्षीय भाषण में जर्मनी के सुप्रसिद्ध लेखक श्री आरिफ नकवी ने कहा कि आज 75 वर्ष से अधिक का लम्बा समय बीत चुका है और “नया दौर”अभी भी महान भूमिका निभा रहा है। यह पत्रिका उर्दू की आवाज़ है और एक ऐसी आवाज़ है जिसने शांति, दोस्ती, भाईचारा, गुणवत्तापूर्ण साहित्य को बढ़ावा दिया है। पर कदम उठाना मुश्किल हो जाता है। सभ्यता की रक्षा के लिए “नया दौर” हमारा प्रतिनिधित्व करता रहा है।
कार्यक्रम की शुरुआत सईद अहमद सहारनपुरी ने पवित्र कुरान की तिलावत से की। कार्यक्रम की सरपरस्ती उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. असलम जमशेदपुरी ने की, इरफान आरिफ, जम्मू और शाहे जमन मेरठ ने शोध लेखक के रूप में भाग लिया। जबकि वक्ता के रूप में आयुसा की अध्यक्ष प्रो. रेशमा परवीन ने भाग लिया, डॉ. इरशाद सयानवी ने परिचय दिया, धन्यवाद ज्ञापन सैयदा मरियम इलाही और संचालन रिसर्च स्कॉलर इलमा नसीब ने किया।
इस अवसर पर उर्दू विभाग के अध्यक्ष प्रो. असलम जमशेदपुरी ने कहा कि “नया दौर” एक ऐसी पत्रिका है जिसका उर्दू में अपना अलग स्वरूप है। हम इस पत्रिका के सभी संपादकों को 75 वर्ष पूरे होने पर बधाई देते हैं। यह एक दस्तावेज़ है जो आधुनिकतावाद, उत्तर आधुनिकतावाद और प्रगतिवाद के युग में काम आया।
कार्यक्रम में पढ़े गए आलेखों में शाहे ज़मन ने ”21वीं सदी में नये युग की साहित्यिक सेवाएँ”, डॉ. मूसा रज़ा ने ”साहित्य की सबसे मूल्यवान पूँजी: नया दौर” और इरफ़ान आरिफ़ ने ”नए युग की साहित्यिक सेवाएँ” का संबंध व्यक्त किया। नया दौर” नये युग की आवाज है। भारतीय शहर लखनऊ की पत्रिका को सरकार द्वारा जनता तक अच्छी तरह से पहुंचाया गया है। इसका पहला अंक ‘नया दूर’ 1955 में प्रकाशित हुआ था। हम उन लोगों को बधाई देते हैं जिन्होंने 1955 से 2001 तक के अंकों को देखा और पढ़ा है और उन पर पी.एच. डी. की उपाधि प्राप्त की है।
प्रमुख लेखक एवं पूर्व उप निदेशक सूचना, लखनऊ के संपादक “नया दौर” ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अली जवाद जैदी साहब ने जो बीज बोया था, उसे कई संपादकों ने सींचा है। पत्रिका के अस्तित्व के लिए कुशल लेखकों की आवश्यकता है। 1955 से हमारे वर्तमान संपादक रेहान अब्बास तक का सफर तय करते हुए आज लोगों की साहित्यिक सेवाओं में एक नए युग की स्थापना हो चुकी है। नये रचनाकारों को भी अपनी रचनाएँ “नया दौर” में प्रकाशित करानी चाहिए।
प्रो. रेशमा परवीन ने कहा कि “नया दौर” ने कई पीढ़ियों को प्रशिक्षित किया है। खास बात यह है कि “नया दौर” के प्रबंधकों ने भी इस से कई सिद्धांत लिये हैं। आज इस पत्रिका के सामने आने वाले खतरों से अवगत होना जरूरी है। हम अपने काम में इतने मशगूल हो जाते हैं कि उस पर ध्यान ही नहीं देते। “नया दौर” में उर्दू भाषा के इतिहास को भी अच्छी तरह से खोजा जा सकता है।
इस दौरान मक्का से प्रो. गुलाम मुहम्मद रब्बानी, दुबई से निहाल अहमद अंसारी, सऊदी अरब से अरशद इकराम, छत्तीसगढ़ से खुर्शीद हयात, डॉ. आसिफ अली, डॉ. शादाब अलीम, डॉ. अलका वशिष्ठ और मुहम्मद शमशाद आदि कार्यक्रम से जुड़े रहे। .