डबल्यू पी डबल्यू सिंड्रोम का इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी विधि द्वारा जांच तथा रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन विधि द्वारा सफल ऑपरेशन

डबल्यू पी डबल्यू सिंड्रोम का इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी विधि द्वारा जांच तथा रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन विधि द्वारा सफल ऑपरेशन

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मेरठ। मेडिकल कालेज में डब्ल्यूपी डब्यलू सिंड्रोम का इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी विधि द्वारा जांच व फ्रीक्वेंसी एब्लेशन विधि द्वारा सफल ऑपरेशन  किया गया है।

मेडिकल कालेज के मीडिया प्रभारी डा वी डी पाण्डेय ने बताया कि कार्डियक इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी एक प्रकार की जांच है, जिसने हाल ही में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता प्राप्त की है। कार्डियक इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी दिल की गतिविधि के आकलन में सहायक होती है, जिससे समय पर दिल की धड़कनों में गड़बड़ी की पहचान हो पाती है। रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन विधि द्वारा दिल की कई बीमारियों के कारण से अनियमित दिल की धड़कन या तेज हृदय गति हों जाती है, कैथेटर द्वारा पृथक्करण पसंदीदा उपचार बन गया है। कैथेटर द्वारा पृथक्करण के सबसे सामान्य प्रकार को रेडियो आवृत्ति पृथक्करण या आरएफए (रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन) भी कहा जाता है। इस विधि में कैथेटर पृथक्करण ऊर्जा के एक रूप का उपयोग करता है जो दिल के उन ऊतकों को खास कर लक्षित कर निष्क्रिय कर देता है जो हृदय के ताल (रिदम) की समस्या उत्पन्न करते हैं। यह उस अतालता (अरिदमिया) का अंत करता है जो प्रभावित स्थान से उत्पन्न हुई थी। डा पाण्डेय ने यह भी बताया कि बढ़ी हुई नियंत्रित हृदय की धड़कन को ठीक कर मरीज का इलाज किया गया।

18 वर्षीय मरीज सचिन को पिछले कुछ महीनों से कभी कभी घबराहट और चक्कर आ रहे थे। मरीज की धड़कन भी बहुत बढ़ जाती थी। प्राइवेट में उसे धड़कन को ठीक करने की कुछ टैबलेट्स दी गई थी मगर उन्हें ज्यादा आराम नहीं हुआ। मरीज ओपीडी में दिखाने आईं। ईसीजी मे पता चला कि मरीज को डबल्यू पी डब्ल्यू सिंड्रोम नाम की बीमारी है। मरीज के दिल की जांच के लिए बताया गया जिसमे दिल की अंदर तार डाल कर धड़कन की बारे में पता किया जाता है इसे हम इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी कहते है। मरीज आयुष्मान लाभार्थी था। मरीज के तैयार होने पर डा शशांक पाण्डेय, डा सी बी पांडेय एवं उनकी टीम द्वारा इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी स्टडी की गईं। जांच में पाया गया दिल के अंदर धड़कन बढ़ाने के लिए ऊर्जा के प्रवाह का एक और रास्ता है जो लेफ्ट लेटरल पोजिशन में पाया गया। अतिरिक्त बने हुए रास्ते को रेडियो फ्रीक्वेंसी एब्लेशन विधि द्वारा जला दिया गया जिससे मरीज की धड़कन नियंत्रित हो गई और भविष्य में दोबारा धड़कन तेज होने की संभावना खत्म हो गई।

डा शशांक पांडेय सहआचार्य, हृदय रोग विभाग ने बताया कि कई मायनों में दिल एक परिष्कृत पंप की तरह होता है जिसे अपने उचित काम के लिए विद्युत आवेग और वायरिंग की आवश्यकता होती है। दिल में यह विद्युत आपूर्ति एक नियमित और नपे तुले अंदाज़ में विशिष्ट ऊतकों के माध्यम से बहती है जिससे ऊर्जा का प्रवाह होता रहता है जिससे हृदय के पंप का निर्बाध कार्य सुनिश्चित होता है। हालांकि, कई उदाहरणों में, यह विद्युत प्रवाह अवरुद्ध हो सकता है या बार-बार एक ही ऊतक के इर्दगिर्द घूमता रहता है जिससे हृदय की समग्र वायरिंग प्रणाली में एक प्रकार का ‘शॉर्ट सर्किट’ पैदा होता है। कभी कभी एक असामान्य ऊतक, जिसे वहाँ नहीं होना चाहिए था, एक अतिरिक्त विद्युत आवेग का निर्माण कर सकता है। इन दोनों समस्याओं के कारण दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है, कम या दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं, ये सभी लंबे समय में गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं। कुछ दवाएं मदद करती हैं लेकिन पूरी तरह से प्रभावी नहीं होती हैं, अगर कोई लंबी अवधि के लिए ली जाए तो गंभीर दुष्प्रभाव (साइड इफेक्ट्स) का कारण बनते हैं। इन ताल समस्याओं से निपटने का सबसे प्रभावी तरीका उन उत्तकों को समाप्त करना है जो अतालता के लिए जिम्मेदार असामान्य विद्युत सर्किट का घर होता है। असामान्य ऊतक को खत्म करने की इस प्रक्रिया को पृथक्करण कहा जाता है और सबसे सामान्य प्रकार रेडियो आवृत्ति पृथक्करण (आरएफए) है। कई अतालता के लिए आरएफए 90-98% मामलों में रोग निवारक है। डा पाण्डेय  ने यह भी बताया कि यह तकनीक अत्यधिक कुशल है। जटिल प्रक्रिया के लिए छाती की दीवार को खोलने या किसी भी बड़े ऑपरेशन की आवश्यकता नहीं है। यह एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी के तरह ही किया जाता है। संक्षेप में, इस प्रक्रिया में पतले कैथेटर रक्त वाहिकाओं द्वारा अंदर हृदय में डाला जाता है। ज्यादातर यह पैर की रक्त की नलियों के माध्यम से स्थानीय एनेस्थीसिया के तहत किया जाता है, लेकिन कभी-कभी गर्दन के माध्यम से या कॉलर हड्डी के माध्यम से भी किया जाता है। एक बार कैथेटर हृदय के अंदर होता है तो इसका उपयोग हृदय के विभिन्न हिस्सों के भीतर विद्युत संकेतों को मापने और प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। यह फ्लोरोस्कोपी (एक्स-रे) मशीन और परिष्कृत इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी (ईपी) सिस्टम की मदद से किया जाता है। कई बार हृदय रोग विशेषज्ञ हृदय की धड़कन को उस तरह से बना सकता है जैसा की यह वास्तविक समय में मरीज के साथ होता है ताकि असामान्य वायरिंग के स्थान की पहचान करने में मदद मिल सके। एक बार जब असामान्य ऊतक (तार) का पता लगा लिया जाता है तो पृथक्करण कैथेटर नामक एक अन्य कैथेटर को उसी मार्ग होते हुए हृदय में डाला जाता है और असामान्य ऊतक के ऊपर रखा जाता है। जब चालू किया जाता है तो इस कैथेटर के सिरे से रेडियो आवृत्ति ऊर्जा उत्सर्जित होती है जो कम क्षेत्र में असामान्य ऊतक को जला देती है। जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, अधिकांशतः सामान्य अतालता के लिए प्रक्रिया की सफलता दर 90-98% के बीच है। आमतौर पर प्रक्रिया 1-3 घंटे तक चलती है और मरीज उसी दिन चल सकते हैं। उन्हें उसी दिन, बाद में या अगले दिन छुट्टी दी जा सकती है। डा शशांक पांडेय ने यह भी बताया कि आरएफए द्वारा निम्न रोगों का उपचार किया जा सकता है- सुप्रो वेंट्रिकुलर टैचीकार्डिया (एसवीटी)–जैसे डब्ल्यूपीडब्ल्यू, एवीआरटी, एवीएनआरटी, एट्रियल टैचीकार्डिया, आलिंद संवेग,आलिंद तंतुरचना, वेंट्रीकुलर टैकीकार्डिया आदि।

प्रधानाचार्य डॉ आर सी गुप्ता ने बताया कि यदि कोई व्यक्ति अनियंत्रित हृदय गति तथा अचानक बेहोश हो जाने की समस्या से ग्रस्त है तो हृदय रोग विभाग मेडिकल कॉलेज मेरठ में सलाह लें। डा गुप्ता ने हृदय रोग विभाग के डा शशांक पांडेय, डा सी बी पांडेय एवं उनकी पुरी टीम को सफल ऑपरेशन के लिए बधाई दी।

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